समाज-संदर्भित भाषा-चयन का उपयुक्त माध्यम : भाषायी विकल्पन

Authors

  • डॉ. सुजाता चतुर्वेदी

DOI:

https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i1.95

Abstract

समाजभाषाविज्ञान भाषा को उसके प्रयोक्ता, सामाजिक मानव, के संदर्भ में परिभाषित करता है और उसकी मूल प्रवृत्ति को विषमरूपी मानता है। भाषा की मूल विषमरूपी प्रवृत्ति में ही विभेदकता और विकल्पन का गुण समाविष्ट है। भाषा के विषमरूपी होने के सबसे बड़े प्रमाण भाषाभेद और भाषिक विकल्पन (Linguistic Variation) होते हैं। भाषिक विकल्पन उन भाषिक इकाइयों या तत्वों को कहते हैं जो अलग-अलग सामाजिक संदर्भों में अलग-अलग रूप में आते हैं। भाषायी विकल्पन सामाजिक सांस्कृतिक भाषिक कारणों से परिभाषित होते भी हैं, और उन्हें परिभाषित करते भी हैं। समुदाय का प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार, सांस्कृतिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में अनेक भाषायी विकल्पनों में से उपयुक्त विकल्पन का चुनाव करता है। इसी भाषायी विकल्पन से संबद्ध सिद्धांत हैं भाषायी समता और विभिन्नता के तथा भाषायी अनुरक्षण एवं विचलन के। जहाँ भाषायी समुदाय में व्यक्ति समता और विषमता उपयुक्त भाषायी विकल्पनों द्वारा स्थापित करता है, वहीं भाषायी विकल्पन एवं परिवर्तन द्वारा व्यक्ति भाषायी विचलन करता है और भाषायी अनुरक्षण भी उचित चुनाव द्वारा करता है।

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Published

2016-2024

How to Cite

डॉ. सुजाता चतुर्वेदी. (2024). समाज-संदर्भित भाषा-चयन का उपयुक्त माध्यम : भाषायी विकल्पन. Sampreshan, ISSN:2347-2979 UGC CARE Group 1, 17(1), 228–234. https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i1.95

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