प्रेमचंद के उपन्यासों में राष्ट्रबोध: एक अवलोकन

Authors

  • राजीव कुमार दास

DOI:

https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i2.358

Abstract

 

प्रेमचंद भारत की राष्ट्रीयता और प्रगतिशील चेतना के प्रतिनिधि साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्होंने उपन्यास साहित्य में देश की पराधीनता के यथार्थ को उसके विभिन्न आयामों और जटिलताओं के साथ रखा है। राष्ट्र की आजादी की समस्या प्रेमचंद के लिए मात्र भावनात्मक अथवा राष्ट्र-प्रेम की समस्या नहीं रही है बल्कि वह आर्थिक शोषण, दमन, कुंठा आदि से जुड़ी हुई थी। अंग्रेजों की शोषण नीति से उत्पन्न हुई किसानों की दरिद्रता, निर्धनता, दयनीयता जैसी अमानवीय परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण उनकी रचनाओं के पात्रों के माध्यम से देखने को मिल जाते हैं। समाज में प्रत्येक दृष्टि से समानता कैसे स्थापित हो यह चिंता प्रेमचंद की रचनाओं में देखने को मिल जाती है। समकालीन परिस्थितियों पर इनकी रचना जितनी खरी उतरीती है उतनी ही वर्तमान परिस्थितियों के लिए भी रचना प्रतिनिधित्व करती नजर आती है। राष्ट्रभक्ति और प्रजातंत्र को एक-दूसरे से जोड़कर देखने का नाम प्रेमचंद है। इसमें राष्ट्रीय और जनवादी भावनाओं का समान महत्व रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि सक्रिय राष्ट्रवाद की तत्कालीन कमजोरियों को उजागर करने में प्रेमचंद को काफी सफलता हासिल हुई है।

Published

2016-2024

How to Cite

राजीव कुमार दास. (2025). प्रेमचंद के उपन्यासों में राष्ट्रबोध: एक अवलोकन. Sampreshan, ISSN:2347-2979 UGC CARE Group 1, 17(2), 1329–1337. https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i2.358

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