डॉ रामविलास शर्मा का भाषा संबंधी चिंतन
DOI:
https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i1.342Abstract
'निराला की साहित्य साधना' से परिचित कराने वाले, 'प्रेमचंद और उनके युग' के महत्व से अवगत कराने वाले और 'भारतेंदु युग' की व्यापक रूप में जानकारी देने वाले हिंदी साहित्य के आलोचक रामविलास शर्मा का लेखन विविध और विपुल है। जिस तरह आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' और चिंतामणि लिखते हुए राखलदास बनर्ज़ी के उपन्यास 'शशांक' का अनुवाद किया; मेगास्थनीज के समय के भारत से भारतीयों को परिचित करा इतिहास में मौजूद धुंध को हटाने का कार्य किया साथ ही उस समय खड़ी बोली को लेकर जो आंदोलन चल रहा था उसे भी अपने इतिहास में दर्ज ही नहीं किया वरन् उसमें अपना मत भी प्रस्तुत किया। उसी तरह शुक्ल जी से प्रेरणा लेने वाले तथा 'रामचंद्र शुक्ल और हिंदी आलोचना' लिखने वाले रामविलास शर्मा ने भी साहित्य से इतर; इतिहास और भाषा विज्ञान में भी अपनी लेखनी चलायी है। जिसमें उन्होंने भारतीय इतिहास की घटनाओं और अवधारणाओं के साथ की गयी औपनिवेशिक कुटिलता को उजागर कर तथ्य व तर्क के साथ अपनी बात रखी है। अपने भारत में शासन को उचित ठहराने तथा श्वेत नस्ल के भार सिद्धांत को व्यवहारिक रूप देने के लिए अंग्रेजों ने आर्य-अनार्य की अवधारणा को विकृत किया जिसके तहत यह कहा गया कि आर्य बाहरी थे। कोई विद्वान यह कहता कि आर्य मध्य एशिया से आए तो कोई उन्हीं से प्रभावित होकर या उनके विरोध में कहता कि आर्य तिब्बत से आए या कि आर्कटिक से आए। जयशंकर प्रसाद ने भारतीय अस्मिता के प्रति सचेत होकर अपने नाटक 'स्कंदगुप्त' के एक गीत में लिखा कि "हमारी जन्मभूमि थी यही, कहीं से हम आए थे नहीं।" डॉ शर्मा अपनी कृतियों में यह तो बताते ही है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए थे साथ ही वह उनका( आर्यों का) विश्व से क्या संपर्क था यह भी बताते है।अपनी कृति 'पश्चिम एशिया और ऋग्वेद' में डॉ रामविलास शर्मा लिखते है कि "यूनानी संस्कृति को आधुनिक पाश्चात्य संस्कृति का मूलाधार माना जाता है। कहा जाता है, आधुनिक संस्कृति एशिया में दर्शन-विज्ञान का प्रकाश फैला रही है। यही काम उसकी मूलाधार यूनानी संस्कृति ने, विशेष रूप से सिकंदर के एशियाई अभियान के बाद किया था।"(1) डॉ शर्मा साम्राज्यवादियों की प्रवृत्तियों को समझाते हुए आगे लिखते है कि " साम्राज्यवादी हमलवार यह प्रचार करते थे कि पूरब के देश पिछड़े हुए है, उन पर सभ्यता प्रसार करने के लिए वे उन पर अधिकार जमाए है। इसी दृष्टिकोण को वे इन देशों के अतीत पर प्रक्षेपित करते थे।"(2) डॉ शर्मा इसी 'दृष्टिकोण' जो पूर्वाग्रह से ग्रसित और तर्कहीन था, का विरोध करते है। ऐसे दुराग्रहों को फैलाने का एक औजार भाषा होती है अत: शर्मा जी ने ' भाषा और समाज', 'राष्ट्रभाषा की समस्या', महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, 'भारत की भाषा-समस्या', 'ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा' तथा 'भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी' (तीन भाग) जैसी कृतियों में भाषा की उत्पत्ति, उसके विकास और प्रभाव का विस्तृत रूप से विवेचन किया है।