संथाल जनजाति का सांस्कृतिक स्वरूप एवं लोकजीवन

Authors

  • नंदन चन्द्र पानी डॉ. हरीश पाण्डेय

DOI:

https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i2.298

Abstract

संथाल जनजाति झारखण्ड समेत भारतीय लोकजीवन का एक विशिष्ट अंग है वर्तमान समय में भी पारंपरिक सांस्कृतिक विरासत एवं धरोहर की संरक्षा करते हुए आदिवासी जीवनदृष्टि व जीवनानुभवों को पीढ़ियों से संगृहीत करते आ रहे हैं। संथाल जनजाति की संस्कृति उनकी पहचान और अस्तित्व की विरासत को प्रस्तुत करती है। ये संस्कृति इनके भौगोलिक, प्रजातीय एवं भाषाई विशेषताओं के माध्यम से अपनी पहचान बनाती है और जीवंत रहती है जो कालांतर में अर्थव्यवस्था, सामाजिक विकास के साधनों, धार्मिक रीतियों तथा विशिष्ट नियमों एवं प्रतीकों के पारंपरिक मान्यताओं द्वारा सांस्कृतिक परिधि (जनजातीय अभिमूल्यों) का निर्माण करती है। संथाल संस्कृति अन्य जनजातीय संस्कृतियों से साम्यता रखते हुए भी अपने विशिष्ट प्रजातीय गुणों एवं लोकजीवन के लिए जानी जाती है जिसमें उनका रहन-सहन, वेश-भूषा, गोत्र व्यवहार, मान्यताएं, भोजन पद्धति, प्राकृतिक संसर्ग, गोदना, आभूषण, आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन, पर्व-त्यौहार तथा रीति-रिवाज आदि सभी सांस्कृतिक अभिमूल्यों के सजीव अंग है। यह शोध पत्र भारतीय संस्कृति के वाहक समुदाय 'संथाल' के सांस्कृतिक वैशिष्ट्य, उनकी दृढ़ मान्यताओं, आचरण पद्धतियों, ज्ञानात्मक प्रक्रियाओं तथा धार्मिक विश्वासों व सांस्कृतिक प्रतिरूपों की पारंपरिक एवं रूढ़ रीतियों की विवेचना प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत शोध पत्र में संथाल जनजाति के सांस्कृतिक आयामों के अन्वेषण की दृष्टि से शोधकर्त्ता द्वारा अध्ययन क्षेत्र भूरसा के संथाल जनजाति के सांस्कृतिक स्वरूप जिसमें उनकी जीवन पद्धति, पारंपरिक बसाहट, भाषा-बोली, जीवन संस्कार, मान्यताएं, आर्थिक संरचना, धार्मिक रीतियां, पर्व-त्यौहार तथा संस्कृतिकरण आदि की विवेचन प्रस्तुत की गई है। प्रस्तुत अध्ययन हेतु शोधकर्ता ने छ: आयामों पर आधारित अर्धसंरचित साक्षात्कार अनुसूची द्वारा प्रदत्त संकलन तथा शोध प्रविधि के रूप में यथार्थवादी नृजातीय उपागम का उपयोग किया गया है। जिसके अंतर्गत भुरसा ग्राम के 12 परिवारों/ सदस्यों को शामिल किया गया है जो कि भुरसा ग्राम के चार टोलों (क्षेत्र) से सम्बंधित थे। प्रस्तुत शोध पत्र संथाल जनजाति की भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति को ज्ञात करने, उनके अंतःसंबंधों के सूक्ष्म ताने-बाने को समझने तथा वर्तमान समय में संथालों में निर्मित सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिक कैनवास के सापेक्ष देखने व सांस्कृतिक समाजीकरण के प्रतिरूपों को जानने में यह शोध पत्र विषद् विवेचना प्रस्तावित करती है।

Published

2016-2024

How to Cite

नंदन चन्द्र पानी डॉ. हरीश पाण्डेय. (2024). संथाल जनजाति का सांस्कृतिक स्वरूप एवं लोकजीवन. Sampreshan, ISSN:2347-2979 UGC CARE Group 1, 17(2), 1180–1194. https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i2.298

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