रीतिकाल में राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत कवि भूषण

Authors

  • -डॉ. नरेन्द्र पानेरी

DOI:

https://doi.org/10.8476/sampreshan.v16i3.120

Abstract

 

 

महाकवि भूषण का आविर्भाव रीतिकाल में हुआ था। रीतिकाल में लक्षण ग्रन्थों का निर्माण और श्रृंगार वर्णन की प्रवृत्ति प्रधानतया परिलक्षित होती है। परन्तु कविवर भूषण ने उस प्रवृत्ति को आंशिक रूप से अपनाया है। उन्होंने श्रृंगार के वासनामय चित्रों की अपेक्षा वीर रस की ओजस्वी वाणी मुखरित की है। भूषण ने जहां एक ओर शिवा-बावनी और छत्रसाल दशक जैसी वीररसपूर्ण ओजस्वी काव्य कृतियों की रचना की वहीं दूसरी ओर 'शिवराज भूषण' जैसे अंलकार- ग्रन्थ की रचना करने आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। किन्तु उनकी दृष्टि लक्षण पर न रहकर लक्ष्य पर अधिक रही है। भूषण ने अपने काव्य का आलम्बन ही ऐसे शौर्य और धर्म रक्षक व्यक्ति को बनाया था जो वीरता के कदमों से अपनी धरती पर चलता है। वीर के साथ शिवाजी धर्मावतार, संस्कृति के प्रतिनिधि और जागरण के अग्रदुत है। इसी आधार पर भूषण राष्ट्रीय चेतना के वाहक बन गए ।

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Published

2016-2024

How to Cite

-डॉ. नरेन्द्र पानेरी. (2024). रीतिकाल में राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत कवि भूषण. Sampreshan, ISSN:2347-2979 UGC CARE Group 1, 16(3), 31–34. https://doi.org/10.8476/sampreshan.v16i3.120

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