दीन-ए-इलाही का उदय: अकबर के धार्मिक समन्वयवाद का एक अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.8476/sampreshan.v16i3.108Abstract
दीन-ए-इलाही का उदय सम्राट अकबर के शासनकाल के तहत मुगल भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करता है। यह शोध दीन-ए-इलाही के ऐतिहासिक संदर्भ, विश्वासों, प्रथाओं और प्रभाव पर प्रकाश डालता है, जो एक समन्वित धर्म है जो विविध धार्मिक परंपराओं में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश करता है। अकबर की धार्मिक सहिष्णुता और समन्वयवाद की नीतियों की जांच के माध्यम से, शोध दीन-ए-इलाही के निर्माण के पीछे की प्रेरणाओं और इसके मूल सिद्धांतों की पडताल करता है। यह कुलीनों और दरबारियों के बीच दीन-ए-इलाही को बढावा देने में अकबर की व्यक्तिगत भूमिका के साथ-साथ धार्मिक नेताओं और समुदायों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं की जांच करता है। इसके अलावा, शोध मुगल समाज को आकार देने और बाद के शासकों को प्रभावित करने में दीन-ए-इलाही की दीर्घकालिक विरासत का आकलन करता है। कुल मिलाकर, यह अध्ययन मुगल भारत में धार्मिक समन्वयवाद की जटिलताओं और क्षेत्र के इतिहास और संस्कृति पर इसके स्थायी प्रभाव पर प्रकाश डालता है।