वैदिक यज्ञ का स्वप एवं उसकी प्रासंगिकता
DOI:
https://doi.org/10.8476/sampreshan.v17i1.102Abstract
हवन-यज्ञ शुभ कर्मों में से एक है। यह एक सकाम कर्म है। हवन-यज्ञ किसी-न-किसी कामना की सिद्धि के लिए किया जाता है। इस शुभ कर्म का प्रारम्भ वैदिक युग से ही हुआ है। आज तक इसकी परम्परा चलती आ रही है। प्राचीन काल के ऋषि समाधि अवस्था प्राप्त वैज्ञानिक रहे हैं। उन्होंने अपने अनुभूति के आधार पर एक सरल तथा वैज्ञानिक पद्धति का आविष्कार जनसामान्य को विभिन्न कामनाओं की सिद्धि के लिए किया। इस प्रकार के हवन-यज्ञ वैदिक युग में हमेशा किये जाते रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ, गोमेध यज्ञ, राजसूय यज्ञ आदि यज्ञों का वर्णन आता है। त्रेतायुग में यशस्वी सम्राट महाराज दशरथ ने महर्षि श्रृंगी ऋषि के द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान कराया था। परिणाम स्वरूप वृद्धावस्था में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न जैसे सूर्यवंश में देदीप्यवान् पुत्र रत्न उनको प्राप्त हुए। द्वापरयुग में अश्वमेध, राजसूय, पुण्डरीक आदि यज्ञ सम्पन्न किये गये हैं। इस यज्ञ से यश विश्व भर में प्रकाशमान होता था। इन शुभ कर्मों का व्यापक प्रभाव पूरे विश्व के वायुमण्डल पर पड़ता था।